मेरा यही अंदाज इस ज़माने को खलता है, इतना पीने के बाद भी सीधा कैसे चलता है। 

ख्वाब में तो ख्वाब पूरे हो नहीं सकते कभी, इसलिए राहे हकीकत पर चला करता हूँ मैं। 

दिल है कदमों पे किसी के सर झुका हो या न हो, बंदगी तो अपनी फ़ितरत है ख़ुदा हो या न हो। 

बस दीवानगी की खातिर तेरी गली मे आते हैं, वरना आवारगी के लिए तो सारा शहर पड़ा है। 

जरूरत है मुझे नये नफरत करने वालों की, पुराने दुश्मन तो अब मुझे चाहने लगे है। 

कोई ताबीज़ ऐसा दो कि मैं चालाक हो जाऊं, बहुत नुकसान देती है मुझे ये सादगी मेरी। 

हमको मिटा सके वो ज़माने में दम नहीं, हमसे ज़माना खुद है ज़माने से हम नहीं। 

ये मत समझ कि तेरे काबिल नहीं हैं हम, तड़प रहे हैं वो जिसे हासिल नहीं हैं हम। 

सूरज, चाँद और सितारे मेरे साथ में रहे, जब तक तुम्हारा हाथ मेरे हाथ में रहे, शाखों से जो टूट जाये वो पत्ते नहीं हैं हम, आँधी से कोई कह दे कि औकात में रहे। 

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